बिहार:विज्ञान के निरंतर विकास और तरक्की के बावजूद आज भी जनसाधारण के एक बड़े हिस्से में अंधविश्वास गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं। हम चारों ओर ऐसे उदाहरण देखते हैं, जहां लोग साधारणत: किसी मंत्र, टोना-टोटका या चमत्कारी उपायों के झांसे में आकर अपनी समस्याओं का समाधान तलाशते हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोग मानते हैं कि अक्षत (चावल) पर मंत्र पढ़कर फूंक मारने भर से संतान प्राप्ति जैसी चमत्कारी घटनाएं हो सकती हैं। ऐसे अंधविश्वासी विचारों को मानने वाले लोग सिर्फ़ अपनी ही नहीं, बल्कि अपने समाज की भी प्रगति में बाधा डालते हैं।
आसपास ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो संत और भक्त का चोला पहनकर समाज सेवा का दावा करते हैं, लेकिन उनका असली उद्देश्य भोले लोगों को एक बार अपने झांसे में लाना होता है। जब भक्तों को यह भरोसा हो जाता है कि बाबा परोपकारी हैं और उनका कोई स्वार्थ नहीं है, तो श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगती है और चढ़ावा आने लगता है। इसके बाद उनकी चांदी ही चांदी हो जाती है। दुर्गा पूजा के अवसर का फायदा उठाते हुए ये लोग अपनी दुकान चमकाने में लगे हुए हैं। कोई संतान प्राप्ति का दावा करता है, तो कोई चमत्कारी तरीके से सारे कष्ट दूर करने का। प्रचार-प्रसार भी धड़ल्ले से चल रहा है।
इतने शिक्षा की व्यवस्था और तकनीकी रूप से उन्नत समाज में भी ऐसे विचार क्यों पनपते हैं? इसका उत्तर हमें समाज की जटिलताओं में छिपा मिलता है। जिन समाजों में शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी होती है, वहाँ अंधविश्वासों का फैलना सामान्य हो जाता है। आम लोग जब अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक समाधान नहीं ढूंढ पाते हैं, तो वे उन लोगों के जाल में फंस जाते हैं जो तथाकथित चमत्कारी उपायों का दावा करते हैं। भले ही ये उपाय असत्य और निराधार होते हैं, लेकिन कठिनाइयों में घिरे लोग इनके जाल में फंस जाते हैं।
पिछले कई दशकों से कई लेखक, विद्वान और कलाकार फिल्म और साहित्य के माध्यम से इन अंधविश्वासों के खिलाफ़ जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। सत्य और तथ्य के आधार पर लोगों को समझाने का प्रयास किया जाता रहा है, कि उनकी समस्याओं का हल विज्ञान और तर्कसंगत सोच में है, न कि अंधविश्वासों में। फिर भी, यह प्रयास अब तक पूरी तरह सफल नहीं हुआ है, और इसका मुख्य कारण है—आम जनता की आंतरिक सामर्थ्य की कमी।
विचारशील लोगों का मानना है कि जब लोग स्वयं सच को देखने और समझने की क्षमता खो देते हैं, तब वे ऐसे अंधविश्वासों के गुलाम बन जाते हैं। वे सबकुछ देखते हुए भी अंधे की तरह नजरअंदाज कर देते हैं, और जानते हुए भी अनभिज्ञता का प्रदर्शन करते हैं। यह समस्या केवल ज्ञान की कमी नहीं, बल्कि मानसिकता की जड़ता का परिणाम है।
ऐसे में सवाल उठता है कि समाज इस स्थिति से कैसे उभरेगा? इसका उत्तर स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह ज़रूर कहा जा सकता है कि समाधान शिक्षा और जागरूकता में है। लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने और अपनी समस्याओं का तार्किक समाधान खोजने के लिए प्रेरित करना होगा। समाज को तर्क और विज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करना ही एकमात्र तरीका है, जिससे अंधविश्वास से मुक्ति पाई जा सकती है।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि समाज इस दिशा में कितनी प्रगति करता है, और क्या वह अंधविश्वास की गहराई से बाहर निकलने में सक्षम होता है। तब तक, विद्वानों और जागरूक नागरिकों का कर्तव्य है कि वे सतत रूप से अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाते रहें, और समाज को सही दिशा दिखाते रहें।