कर्मियों की अनदेखी से लाखों की योजना फेल ।
कोटवा (पूर्वी चंपारण): प्रखंड में मनरेगा के तहत किए गए पौधारोपण में भारी लापरवाही और अनियमितता का मामला सामने आया है। मनरेगा कर्मियों और पदाधिकारियों की उदासीनता के चलते लाखों की लागत से लगाए गए पौधे तेजी से नष्ट हो रहे हैं। स्थिति यह है कि कई स्थानों पर पौधे लगाए तो गए, लेकिन देखरेख के अभाव में अधिकांश खत्म हो चुके हैं। पौधारोपण योजना को सुचारू रूप से क्रियान्वित करने में कर्मियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार ने इसे पूरी तरह नाकाम बना दिया है।
2022-23 में लगाए गए अधिकांश पौधे खत्म
कोटवा के कझिया स्थित ए.के.आर.आर. कॉलेज के परिसर में 2022-23 सत्र के दौरान दो यूनिट में कुल 400 पौधे लगाए गए थे। इस कार्य पर साढ़े तीन लाख रुपये से अधिक का खर्च बताया जा रहा है। पौधों की सुरक्षा के लिए गेबियन (जालीदार घेरा) लगाए गए थे और सिंचाई के लिए चापाकल की व्यवस्था की गई थी। लेकिन महज एक साल के भीतर अधिकांश पौधे और गेबियन गायब हो गए हैं। जो गेबियन बचे हैं, वे भी जर्जर अवस्था में हैं। वहीं, गिने-चुने पौधे खर-पतवार और झाड़ियों से घिरे पड़े हैं, जिनके आसपास महीनों से सफाई नहीं की गई है।
वन पोषक का भुगतान रुका, देखभाल ठप
पौधों की देखभाल के लिए नियुक्त वन पोषक मोबिला महतो ने बताया कि उन्हें अब तक भुगतान नहीं किया गया। लंबे समय तक सिंचाई और देखरेख करने के बावजूद जब पैसा नहीं मिला, तो उन्होंने काम बंद कर दिया। इसके बाद से अधिकांश पौधे खत्म हो गए।
मनरेगा कर्मी का कहना है कि वन पोषक ने काम बंद कर दिया, इसलिए उनका भुगतान रोका गया। लेकिन इस बीच योजना पूरी तरह असफल होती नजर आ रही है।
मनरेगा पीओ का बयान विवादित
जब प्रखंड मनरेगा पीओ राजेश कुमार से इस बारे में सवाल किया गया तो उनका बयान चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “पौधे फिर लगा दिए जाएंगे।” गेबियन के गायब होने पर उन्होंने कहा, “लोग उखाड़ ले गए होंगे।” वहीं, हैंड पंप के विषय में उनका कहना था कि “शायद किसी ने चोरी कर लिया होगा, फिर से लगा देंगे।”
डीपीओ ने जांच का निर्देश दिया
मनरेगा डीपीओ राजेश कुमार ने मामले पर संज्ञान लेते हुए पीओ को स्थल पर जाकर जांच करने और आवश्यक कार्रवाई का निर्देश दिया है।
मनरेगा के तहत लाखों रुपये की लागत से की गई पौधारोपण योजना प्रखंड स्तर पर लापरवाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। गेबियन और चापाकल के गायब होने से लेकर पौधों की देखभाल तक में घोर अनियमितता ने योजना की उपयोगिता पर सवाल खड़ा कर दिया है। अधिकारियों और कर्मियों की जवाबदेही तय किए बिना, इस तरह की योजनाओं का सफल होना मुश्किल है।