पश्चिमी राजस्थान में थार के रेगिस्तान में आने वाले जिले कई चुनौतियों से गुजरते हैं इनमें मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
पानी की कमी और बंजर जमीन के कारण यहां लाल हाथी खेतों की कल्पना करना मुश्किल है हाइड्रोपोनिक तकनीक के जरिए बालोतरा जिले के किस ने यह कर दिखाया है।
बालोतरा के किस रामेश्वर सिंह ने रेगिस्तान में हाइड्रोपोनिक खेती की शुरुआत की और प्रदेश का पहला प्लांट स्ट्रक्चर लगाया यह खेती बिना मिट्टी और कम पानी में की जाती है मिट्टी के स्थान पर कोकोपीट यानी नारियल के छिलके का बुरादा इस्तेमाल किया जाता है।
रेगिस्तान में खेती की यह इजरायली तकनीक है इस तकनीक में 10 गुना 10 फीट की जगह में भी पाइप से स्ट्रक्चर तैयार कर खेती की जा सकती है पाइप और गमले में कोकोपीट डाली जाती है और फिर पौधों के लिए जरूरी
न्यूट्रिशन इस तरह कम जगह और कम लागत में ऑर्गेनिक फैसले हासिल की जा सकती है।
रामेश्वर सिंह सातवीं क्लास तक पढ़े हैं इसके बावजूद उन्होंने बालोतरा में सबसे उन्नत किस्म की खेती कर दिखाई और अब देश भर में अन्य किसानों को हाइड्रोपोनिक खेती की ट्रेनिंग भी देते हैं साथ ही सेटअप तैयार करने में मददत करते हैं। रामेश्वर सिंह कहते हैं कि किस काम जमीन में वर्टिकल खेती कर इस तकनीक से ज्यादा पैदावार ले सकते हैं बहुत कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है सेटअप में लगभग 6000 पौधे लगा रखे हैं जहां खेती करना भी मुमकिन नहीं था वहां ऑर्गेनिक सब्जियों से अच्छी कमाई हो रही है।
रामेश्वर सिंह ने कहा हाइड्रोपोनिक तकनीक से कम बजट में भी खेती शुरू की जा सकती है बालोतरा में पानी की कमी है ऐसे में आम फसलों में जितने पानी में सिंचाई की जाती है उसका सिर्फ 10% ही इस तकनीक में पानी की जरूरत पड़ती है इस तकनीक को सीखने के लिए भारत से तीन-चार ने ट्रेनिंग ली कोरोना के बाद 2019 में मैंने यह काम शुरू कर दिया।
प्लांट लगाने के लिए 10 बाय 10 फीट की जगह भी पर्याप्त है इससे छत पर या उबर खाबर जगह भी डेवलप किया जा सकता है।